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राजस्थानी लोकगीत (46 Songs) – Rajasthani Folk Song, Rajasthan Gk, Notes ,PDF 


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राजस्थानी लोकगीत राजस्थान की संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं। राजस्थान में निवास करने वाली अनेक जातियाँ राजस्थानी लोकगीत गा-बजाकर ही अपना गुजारा करती रही हैं। कुरजां, पीपली, रतन राणो, मूमल, घूघरी, केवड़ा आदि लोकगीत जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर आदि क्षेत्रों में आये जाते हैं।



✍️राजस्थानी लोकगीत निम्नलिखित हैं:

1. केसरिया बालम:-

  • राजस्थान का प्रसिद्ध राजस्थानी लोकगीत।
  • प्रसिद्ध गायिका :- अल्लाह जिलाई बाई ने गाया।

2. घुड़ला गीत-: मारवाड़ (जोधपुर, पाली, जालौर) क्षेत्र में घुड़ला उत्सव पर गाया जाने वाला गीत।

3. मूमल गीत-:  जैसलमेर क्षेत्र का श्रृंगार परक विरह गीत, जिसमें लोद्रवा की राजकुमारी मूमल की नख से शिखा तक की सुन्दरता का वर्णन किया गया है।

4. जीरा गीत-: जालौर क्षेत्र का जन सामान्य गीत जिसमें पत्नी अपने पति को जीरा न बोने की सलाह देती है।

5. बिछुड़ा गीत-:  हाड़ौती क्षेत्र का जन सामान्य गीत जिसमें बिच्छु के काटे जाने पर पत्नी अपने पति को दूसरी शादी करने के लिए सलाह देती है।

6. पंछीड़ा गीत-:  मेवाड़ क्षेत्र का जन सामान्य गीत जिसे माणिक्य लाल वर्मा ने लिखा था।

7. हमसीठो गीत-: मेवाड़ क्षेत्र के भील स्त्री-पुरुषों द्वारा गाया जाने वाला गीत।

8. लांगुरिया गीत-:  कैला देवी की आराधना में गाया जाने वाला गीत।

9. होलर गीत -:

  • जच्चा गीत।
  • शुभ कार्य सम्पन्न होने पर गाया जाने वाल गीत।

10. बधावा गीत-: पुत्री विदाई पर गाया जाने वाला गीत।

11. ओल्यूं गीत-:  पुत्री विदाई पर गाया जाने वाला गीत।

12. हरजस गीत-: सगुण भक्ति के गीत।

13. रसिया गीत-: भरतपुर क्षेत्र में गाया जाने वाला गीत।

14. दारूड़ी गीत:- कलाली गीत, मारूड़ी गीत, राणा जोगी- महफिल या गढ़ गीत

15. हिचकी गीत-: विरह गीत

16. बारहमासा गीत-: विरह गीत जिसमें बारह महीनों का वर्णन है।

17. कुरजां गीत-: विरह गीत

18. पीपली गीत-:  विरह गीत

19. हिण्डोला गीत-:  श्रावण मास में गाये जाने वाले गीत।

20. घोड़ी गीत-:  पुत्र-विवाह पर निकासी के समय गाया जाने वाला गीत।

21. जल्ला गीत-:  बारात के समूह को देखकर वधु प़क्ष की महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले गीत।

22. सीठणा गीत-:  गाली गीत, जिसमें वधुपक्ष की महिलाओं द्वारा बारातियों के साथ हास-परिहास किया जाता है।

23. दुपट्टा गीत-:  वधु की सहेलियों द्वारा गाया जाने वाला गीत।

24. कामण गीत-:  तोरण रस्म के दौरान गाया जाने वाला गीत। जिसका उद्देश्य वर व वधु को जादू टोनो से मुक्त कराना एवं वर को वधु के पक्ष में करना।

25. मोरिया गीत-:  सगाई के बाद लड़की के द्वारा गाया जाने वाला गीत।

26. परणेत गीत-: फेरों की रस्म के दौरान गाये जाने वाले गीत।

27. मायरा गीत-: भात रस्म अदायगी के दौरान गाया जाने वाला गीत।

28. कांगसिया गीत-: पति-पत्नि के मध्य हंसी-ठिठोली का गीत।

29. चिरमी गीत-: नवविवाहिता के द्वारा अपने पिता व भाई की याद में गाया जाने वाला गीत।

30. इण्डोणी गीत-: जन सामान्रू लोकगीत।

31. पणिहारी गीत-: पनघट से पानी लाने के दौरान गाया जाने वाला गीत, जिसमें पत्नी को पतिव्रता धर्म पर अटल रहना बताया गया है।

32. गोरबन्द गीत-: उंट का श्रृंगार। शेखावाटी व मारवाड़ में गाये जाने वाला गीत।

33. पपैया गीत-:  वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला गीत।

34. सुवटिया गीत-:  भील स्त्री द्वारा गाया जाने वाला गीत।

35. कागा-:  विरह गीत।

36. पटेल्या गीत-: लालर, बिछियों- पर्वतीय क्षेत्रों में गाया जाने वाला गीत।

37. ढोला-मारू-: सिरोही क्षेत्र में गाया जाने वाला गीत।

38. काजलिया-: श्रृंगार परक गीत।

39. सेज्जा गीत-: सांझी-पूजन के दौरान गाया जाने वाला गीत। पूजन के अंतिम दिन ठुमड़ा गीत गाया जाता है।

40. लावणी गीत-:  लावणी का अर्थ बुलाने से है। नायक द्वारा नायिका को बुलाने हेतु गाया जाने वाला गीत।

41. फलसड़ा-: अतिथियों के सत्कार हेतु गाया जाने वाला गीत।

42. कुकड़ी गीत-: रात्रि जागरण में गाया जाने वाला गीत।

43. चरचरी-: ताल व नृत्य के साथ गाया जानेवाला गीत।

44. मरस्या गीत-: मृत व्यक्ति की स्मृति में गाया जाने वाला गीत।

👉लोक गायन शैलियां

1. माण्ड गायन शैली

  • 10 वीं 11 वीं शताब्दी में जैसलमेर क्षेत्र माण्ड क्षेत्र कहलाता था। अतः यहां विकसित गायन शैली माण्ड गायन शैली कहलाई।
  • एक श्रृंगार प्रधान गायन शैली है।

प्रमुख गायिकाएं

  • अल्ला-जिल्हा बाई (बीकानेर) – केसरिया बालम आवो नही पधारो म्हारे देश।
  • गवरी देवी (पाली) भैरवी युक्त मांड गायकी में प्रसिद्ध
  • गवरी देवी (बीकानेर) जोधपुर निवासी सादी मांड गायिका।
  • मांगी बाई (उदयपुर) राजस्थान का राज्य गीत प्रथम बार गाया।
  • जमिला बानो (जोधपुर)
  • बन्नों बेगम (जयपुर) प्रसिद्ध नृतकी “गोहरजान” की पुत्री है।

2. मांगणियार गायन शैली

  • राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर जैसलमेर तथा बाड़मेर की प्रमुख जाति मांगणियार जिसका मुख्य पैसा गायन तथा वादन है।
  • मांगणियार जाति मूलतः सिन्ध प्रान्त की है तथा यह मुस्लिम जाति है।
  • प्रमुख वाद्य यंत्र कमायचा तथा खड़ताल है।
  • कमायचा तत् वाद्य है।
  • इस गायन शैली में 6 रंग व 36 रागिनियों का प्रयोग होता है।
  • प्रमुख गायक 1 सदीक खां मांगणियार (प्रसिद्ध खड़ताल वादक) 2 साकर खां मांगणियार (प्रसिद्ध कम्रायण वादक)

3. लंगा गायन शैली

  • लंगा जाति का निवास स्थान जैसलमेर-बाडमेर जिलों में है।
  • बडवणा गांव (बाड़मेर) ” लंगों का गांव” कहलाता है।
  • यह जाति मुख्यतः राजपूतों के यहां वंशावलियों का बखान करती है।
  • प्रमुख वाद्य यत्र कमायचा तथा सारंगी है।
  • प्रसिद्ध गायकार 1 अलाउद्दीन खां लंगा 2 करीम खां लंगा

4. तालबंधी गायन शैली

  • औरंगजेब के समय विस्थापित किए गए कलाकारों के द्वारा राज्य के सवाईमाधोपुर जिले में विकसित शैली है! 



 


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Motivational Quote
वक़्त तू कितना भी परेशान कर ले 
हमे लेकिन याद रख किसी मोड़ पर
 तुझे भी बदल देंगे हम..! 
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