Mahila Evm baal Apradh Notes PDF : महिला एवं बाल अपराध हस्तलिखित सम्पूर्ण नोट्स पीडीएफ राजस्थान पुलिस Exam
👉 महिला अपराध :-
-किसी महिला का कार्यस्थल अथवा अन्यत्र किसी
जगह शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, यौन एवं
भावनात्मीक उत्पीड़न। शोषण अपराध की श्रेणी में
आता है।
"हर तीन में एक महिला दहेज के लिए प्रताड़ीत है
तथा हर घण्टे 1 की मृत्यु निश्चित है।
-अपहरण तथा बलात्कार के अनेको मामले देखने को
मिले हैं।
⏩ महिला संरक्षण हेतु बनाए गए कानून
1. भारतीय दंड संहिता लागू :- 1860
यह भारत मे किए गए प्रत्येक अपराध को बताता है
तथा उनमें से प्रत्येक के लिए सजा अथवा जुर्माना
बताता है।
धारा 354-: स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय
से उस पर हमला या बल प्रयोग।
धारा 354A -: यौन उत्पीड़न के लिए सजा
धारा 354B-: बलपूर्वक किसी स्त्री को नग्न करना
या नग्न करने के लिए विवश करना।
धारा 354C-: ताक झाक करना!
धारा 3540-: पीछा करना !
धारा 509-: शब्द, अंगविक्षेप या ऐसा कार्य जो स्त्री
की लज्जा का अनादर करें।
▶️भारतीय दण्ड सहिता की धारा 354 के तहत सजा के प्रावधान
1. समान्यतः लज्जा भंग के आशय मे न्यूनतम 1 वर्ष तथा अधिकतम 5 वर्ष की सजा हो सकती है।
इस धारा को 2013 मे संशोधित किया गया जिसके तहत सजा के प्रावधान
👉 354क -: यौन उत्पीड़न करने पर तीन वर्ष तक का
कारावास या जुर्माना अथवा दोनों !
👉 354ख -: बलपूर्वक किसी स्त्री को नग्न करने
अथवा नग्न करने के लिए विवश करने के लिए
न्यूनतम तीन वर्ष तथा अधिकतम सात वर्ष का कारावास !
👉 354ग -: किसी महिला साथ तांक झांक करने
पर अथवा उसकी फोटो खींचने पर न्यूनतम 1 वर्ष
से अधिकतम 3 वर्ष की सजा का प्रावधान।
👉 354घ-: किसी महिला का पीछा करना अथवा
किसी सोशल मीडिया के माध्यम से परेशान करने पर अधिकतम 3 वर्ष की सजा का प्रावधान।
Note:- इंटरनेट का इस्तेमाल होने पर सजा 5 वर्ष
तक हो सकती है।
❇️⏩भारतीय दण्ड संहिता संशोधित अधिनियम :-2018
उद्देश्य-: बलात्कार पर व्यापक कानून बनाना।
मुख्य फैसले1. पिड़िता की मौत होने पर मौत की सजा का
प्रावधान
2. धारा 376D -: सामूहिक बलात्कार की स्थिती में
सजा 20 वर्ष अथवा आजीवन कारावास तक।
3. यौन संबंध बनाने की वैधानिक उम्र 18 वर्ष ।
4. महिला का पिछा करने अथवा ताकं झांक करने
अथवा अश्लील हरकरत करने पर एक बार जमानत
तथा दुसरी बार गैर जमानत।
5. तेजाब हमले पर 10 वर्ष की सजा का प्रावधान।
Note:- तेजाब हमले मे सभी अस्पताल निशुल्क
सहायता करेंगे।
▶️ दण्ड प्रक्रिया सहिताः- 1973
code of criminal procedure (CRPC) 1973
पारित - 1973
लागू-1 अप्रैल 1974
धारा 375
यह धारा बलात्कार की स्थितियों का स्पष्टीकरण करती
है।
16 दिसम्बर 2012 की रात को दिल्ली निर्भया बलात्कार
केश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्याय मूर्ति जे.एस.
वर्मा के अध्यक्षत मे एक तीन सदस्यों की कमेटी गठीत
की।
जिसने 23 जनवरी 2013 को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
इस संशोधन से बलात्कार की नई परिभाषा सामने
आयी जिसमें 7 प्रकार के व्यवहार बताये गये।
इसके अंतर्गत यौनी मे लिंग के प्रवेश, यौनी या गुर्दा मे
किसी वस्तु का प्रवेश या मुंह इत्यादि का प्रयोग किया
जाए तो उसे बलात्कार माना जायेगा।
⏩>धारा 376:-
यह धारा बलात्कार के संबंध को दण्ड का प्रावधान करती है।
🔶> धारा 376A :-
स्त्री के साथ उसकी सहमती के बिना या डरा धमका कर या प्रियजनों का मृत्यों का भय दिखा कर किया
गया बलात्कार जिसके कारण स्त्री को कोई गंभीर क्षति
या उसकी मृत्यु हो जाती है।
◾सजा :- न्यूनतम 20 वर्ष जिसका अभिप्राय प्राकृत जीवनकाल का कारावास अथवा मृत्युदण्ड है।
🔶- धारा 376B
पति द्वारा पत्नी से अलग होने की स्थिति में पति द्वारा
सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार माना
जायेगा।
◾सजा :- न्यूनतम 2 वर्ष तथा अधिकतम 7 वर्ष का कारावास
तथा जुर्माना।
🔶धारा 376AB :-
12 वर्ष की कर्म उम्र की लड़की के साथ बलात्कार।
◾सजा :- न्यूनतम 20 वर्ष जिसका अभिप्राय प्राकृत जीवनकाल
का कारावास अथवा मृत्युदण्ड है।
🔶धारा 376 ग/c:- किसी सरकारी अधिकारी, लोकसेवक, जेलअधिकारी,
रोमांडहोम या अमिरक्षा के किसी अन्य स्थान जैसे:अस्पताल, महिला सुधार ग्रह का कर्मचारी रहते हुए
किसी महिला के साथ यौन अपराध करना।
◾सजा :- न्यूनतम पांच वर्ष तथा अधिकतम दस वर्ष का कारावास एवं जुर्माना !
Note:- यदि उपरोक्त स्थितियो मे व्यक्ति महिला के
साथ मेथुन करता है तथा पीड़िता की स्वेच्छिक सहमति
होने पर भी न्यूनतम पांच वर्ष कारावास होगा।
🔶धारा 376 घ/D:- किसी महिला के साथ सामूहिक बलात्कार की स्थिति
होने पर।
यह धारा 2018 के संशोधन अधिनियम से जोड़ी गई।
◾सजा :- न्यूनतम 20 वर्ष का कारावास (आजीवन) या प्राकृत
जीवन काल का कारावास तथा जुर्माना
👉इस धारा को दो भागों में बांटा जाता है।
🔶धारा 376 DA:- 16 वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ सामूहिक
बलात्कार होने पर न्यूनतम सजा 20 वर्ष और अधिकतम
आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड
🔶धारा 376 DB :-12 वर्ष की उम्र की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार
होने पर आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड की सजा।
🔶धारा 376E :- विशेष प्रावधान धारा 376,376A,376D के अधिन किसी अपराध
के लिए दण्डित किया गया व्यक्ति बाकी अन्य धारा के
अपराधो की पुनरावृत्ति करता है तो सजा शेष प्राकृत
जीवनकाल कारावास या मृत्युदण्ड होगी।
⏩भारतीय साक्ष्य अधिनियम -: 1872
पारित -: 1872 ब्रिटिश संसद द्वारा
लागू-: 1 सिंतबर 1872
वायसराय -: लार्ड मेयो
लागूकर्ता -: जेम्स स्टीफन
🔸यह अधिनियम 3 भागों में विभक्त है।
🔸इसमें कुल 11 अध्याय तथा 167 धाराएँ है।
🔸 यह अदालत की सभी कार्यवाहियों पर लागु होता है।
🔸यह शपथ पत्र तथा मध्यस्थ पर लागु नहीं होता है।
🔸यह कोर्ट मार्शल पर भी लागु होता है।
🔴धारा 53A :- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354(A,B,C,D)
तथा दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 376 (A,
AB, B,C,D, DA, DB, E) के तहत किये गए किसी
अपराध में अरोपी यह कहकर नहीं बच सकता की उक्त
महिला पूर्व लैंगीक अनुभव से सुसंगत है।
🔴धारा 114A :- IPC धारा 354 तथा CRPC धारा 376 के तहत
अभियुक्त द्वारा मैथुन किया जाना साबित होता है और
प्रश्न यह है कि स्त्री द्वारा यह बयान दिया जाता है तो
न्यायालय यह उपधारणा करेगा की उसने सहमती नहीं
दी थी।
🔴धारा 114B :- भारतीय दण्ड संहिता की 354(A,B,C,D) धारा 509 (A,B)
के अन्तर्गत किसी व्यक्ति के अपराधी कारीत किया गया है,
और पिड़िता न्यायालय के समक्ष यह कथन कहती है की
उसका यौन उत्पीड़न हुआ या उसकी लज्जा भंग हुई या उसके
कपड़े उतारे गये है या उसकी निष्ठा में हस्तक्षेप किया गया है
या वह किन्ही साधनो द्वारा यौन उत्पीड़ित की गई है। वहाँ
न्यायालय सावीत न हो जाएं की उक्त व्यक्ति न ऐसा नहीं
किया है तब तक उसे अपराधी मानेगा।
▶️दहेज निषेध अधिनियम 1961 :-
यह अधिनियम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा ससंद के संयुक्त
अधिवेशन में पारित किया गया।
1986 मे से पुनः संशोधित किया गया।
लागू :- 20 मई 1961
🔸धारा 1 :- इसमे अधिनियम का संक्षिप्त नाम लागु करने
की तिथि तथा जम्मू कश्मीर राज्य को छोड़ कर संपूर्ण
भारत पर इस अधिनियम को लागु करने की बात
लिखी गई।
🔸धारा :- 2 यह धारा दहेज की परिभाषा तथा दहेज की
स्थितियों को स्पष्ट करती है।
🔸परिभाषा :- दहेज से तात्पर्य एक ऐसी संम्पत्ति या
मूलवान प्रतिभूति से है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दी
गई है। या उसे देने की सहमति बनी।
◾इस प्रकार दहेज :-
▪️क. विवाह के पक्ष द्वारा दुसरे पक्ष को।
▪️ख. विवाह के किसी पक्ष के अभिभावक द्वारा दूसरे पक्ष
के अमिभावक को
▪️ग. विवाह के किसी पक्ष के अन्य व्यक्ति द्वारा दूसरे पक्ष
के किसी अन्य व्यक्ति को
▪️घ. उक्त स्थितियों के अलावा मेहर तथा शरीयत की
रकम दहेज मे शामिल नहीं होगी।
◾स्त्रिीधन :- शादी के वक्त लड़की को जेवर या उपहार मिलते है
तथा सामान्य उपयोग की वस्तुएं जैसे:- फर्नीचर, टी.
वी. इत्यादि।
◾उपहार :- शादि के समय वर तथा वर के रिश्तेदारों को
दिये जाने वाले उपहार
🔸घारा 3 :- यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के प्रांरभ
के पश्चात दहेज लेगा या देगा या लेना दुष्प्रेरित करेगा
तो उसे 5 वर्ष की कैद तथा 15 हजार रूपये का
जुर्माना होगा।
Note :- 1986 के संसोधन मे सजा न्यूनतम 6 माह
तथा अधिकतम 10 वर्ष कर दी गई।
➡️ जुर्माना राशि :- इसका निर्धारण उपहार की कीमत पर
निर्भर करता है।
उपहार तथा जुर्माना राशि दोनो मे से जो भी अधिक
हो, के जुर्माने का प्रावधान।
🔸धारा 4 :- दहेज की मांग के लिए जुर्माना।
यदि कोई व्यक्ति वधु या वर के माता-पिता या अन्य
रिसतेदार या संरक्षक से दहेज की प्रत्यक्ष या परोक्ष की
मांग करता है तो न्यूनतम 6 माह तथा अधिकतम 2 वर्ष
का कारावास तथा 10,000 रूपये का जुर्माना देय
होगा।
🔸धारा 4A :- विज्ञापन पर पाबंदी
यदि कोई व्यक्ति अपने पुत्र या पुत्री के विवाह के
प्रतिफल मे किसी समाचार पत्र या मिडिया के माध्यम
से अपनी सम्पति या धन के अंश या किसी कारोबार मे
हिस्से का कोई प्रकाशन नहीं देगा।
इसके लिए न्यूनतम 6 माह तथा अधिकतम 5 वर्ष की
सजा तथा 15,000 रूपये तक का जुर्माना देय होगा।
🔸धारा 5 :- दहेज देने या लेने के करार शून्य होगा।
🔸धारा 6 :- दहेज की सम्पति का वारिस कौन होगा तथा
दहेज की सम्पति की वापसी।
🔸धारा 6A :- यदि कोई दहेज विवाहीता के अतिरिक्त
किसी अन्य व्यक्ति द्वारा धारण किया जाना है तो -
क. दहेज प्राप्त करने के तीन माह के भीतर अंतरण।
ख. नाबालिक होने की स्थिति में उसके बालिग होने के
एक वर्ष के भीतर अंतरण।
🔸धारा 6B :- यदि कोई उपव्यक्ति धारा 6A के तहत
दोषी पाया गया तो उसे न्यूनतम 6 माह तथा अधिकतम
2 वर्ष का कारावास व 5,000 से 10,000 रूपये के
मध्य जुर्माना देय होगा।
🔸धारा 6C :- यदि धारा 6A के तहत स्त्री की मृत्यु हो गई
हो तो दहेज की सम्पति -
1. संतान नहीं होने पर माता-पिता या अभिभावक द्वारा
अंतरण।
2. संतान होने पर संतान द्वारा अंतरण।
🔸धारा 8 :- दहेज से संबंधित अपराधो में पुलिस तथा
न्यायालयों द्वारा लिया गया संज्ञान
🔸धारा 8A :- घटना से एक वर्ष के अंदर शिकायत होने
पर न्यायालय द्वारा पुलिस रिपोर्ट के आधार पर संज्ञान
लिया जायेगा।
🔸धारा 8B :- दहेज निषेध पदाधिकारियों की नियुक्ति।
वर्तमान मे घरेलु हिंसा अधिनियम 2005 के लिए
नियुक्त किये गए सुरक्षा अधिकारी ही दहेज निषेध
अधिकारी है।
दहेज निषेध अधिनियम :-
1. धारा 498A :- किसी स्त्री के पति या पति के
रिश्तेदारो द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना।
किसी स्त्री को दहेज के लिए उत्पीड़न करना या किसी
मांग को पूरा करवाने के लिए तंग करना।
सजा -: अधिकतम 3 वर्ष का कारावास तथा जुर्माना।
2. धारा 304B -: यदि किसी स्त्री की मृत्यु किसी दाह
या शाररिक क्षति या उसके विवाह के सात वर्ष के
भीतर संदेहहास्पद स्थिती मे होती है तो इसे दहेज मृत्यु
माना जाता है।
सजा -: न्यूनतम सात वर्ष तथा अधिकतम आजीवन
कारावास
3. धारा 306 :- दहेज संबंधी किसी भी उत्पीड़न से तंग
आकर महिला द्वारा आत्महत्या करना यह धारा
आत्महत्या के लिए उकसाने को भी स्पष्ट करती है।
सजा -: 10 वर्ष तक का कारावास तथा जुर्माना।
Note:- उपर्युक्त धाराओं के तहत अपराध गैरजमानती
अपराध होता है। ऐसे मामलो की जांच के लिए सेंशन
जज की नियुक्ति की जाती है।
⏩स्त्री अशिष्ट रूप प्रतिषेध अधिनियम 1986 :-
🔴विज्ञापन, प्रकाशन, लेखन, चित्रों, आंकड़ों या किसी
अन्य तरीके से महिलाओं के अश्लील प्रतिनिधित्व पर
रोक
🔶किसी स्त्री का ऐसा चित्रण :-
I. स्त्री की लज्जा भंग हो
II. जनता के नैतिक चरित्र पर गलत प्रभाव
🔸इस अधिनिमय के तहत महिला क्या कर सकती है1. पिड़िता द्वारा राहत के लिए आवेदन
जैसे- आर्थिक राहत
- बच्चो के अस्थाई संरक्षण का आदेश
- निवास स्थान उपलब्ध कराने का आदेश
🔹मुआवजे का आदेश
2. पिड़िता द्वारा निशुल्क कानूनी मदद की मांग
3. पिड़िता द्वारा संरक्षण अधिकारी से संपर्क
4. पिड़िता द्वारा IPC के तहत क्रिमीनल याचिका भी
दायर की जा सकती है जिसके तहत प्रतिवादी को 3
वर्ष की सजा हो सकती है।
🔶इस अधिनिमय के तहत पिड़िता किससे संपर्क करती है
1. प्रथम - संपर्क संरक्षण अधिकारी जिसकी नियुक्ति
प्रत्येक राज्य सरकार करती है।
2. द्वितीय - इस कानून के तहत पंजीकृत सेवा प्रदाता
संगठन
3. तृतीय - फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट से
Note:- 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में
मेट्रो पोलियन मजिस्ट्रेटों से संपर्क करना होता है।
III. किसी महिला की आकृति, उसके रूप अथवा शरिर
के किसी भाग का ऐसा चित्रण जिससे महिला का
चरित्र कर कलंकीत हुआ है। तथा जिससे जनता के
नैतिक चरित्र पर गलत प्रभाव पड़ा हो।
सजा - प्रथम बार अपराध - 2 वर्ष का कारावास व 2
हजार का जुर्माना
अपराध की पुनरावृति पर - 6 माह से 5 वर्ष का
कारावास 10 हजार से 1 लाख तक जुर्माना
शिकायत केन्द्रI. नजदीकी पुलिस स्टेशन
35-36 / 85
II. जिला न्यायालय
III. उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास
IV. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (जिला व तहसील
स्तर)
🔸शिकायत माता - पिता तथा रिश्तेदार तथा सरकार
से मान्यता प्राप्त संस्था द्वारा
या Toll free No. पर - 181, 1090, 1091
⏩घरेलू हिंसा महिला सरंक्षण अधिनियम 2005
🔹लागू- 26 अक्टूबर 2006
🔸परिभाषा - किसी महिला के साथ किया गया
शारिरिक मानसिक या लैंगिक दुव्यवहार या किसी
प्रकार का शोषण या अपमान तिरस्कार या उपहास,
जिससे महिला की गरिमा का उल्लघन हुआ हो या
वितिय संसाधन जिसकी वह हकदार हो उससे वंचित
किया जाना इत्यादि सभी कृत्य घरेलू हिंसा की श्रेणी मे
आते है।
🔶इस अधिनिमय के तहत पिड़िता के अलावा कोई अन्य
व्यक्ति भी शिकायत दर्ज करवा सकता है।
🔹इस कानून के तहत दिये गए आदेश का उल्लघन करने
पर प्रतिवादी को एक वर्ष तक का कारावास या 20
हजार तक का जुर्माना या दोनों हो सकते है।
🔹इस कानून के तहत रिपोर्ट के तीन दिन में कार्यवाही
होनी आवश्यक है तथा 60 दिन के भीतर मामले का
निपटारा आवश्यक है।
🔸हाल ही चर्चा मेंवर्ष 2019 में न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचुड़ एवं हेमंत गुप्ता की पीठ ने पानीपत सत्र न्यायधिश के निर्णय की पुष्टि करते हुए इस अधिनियम को पुनः परिभाषित किया है।
▶️ इस वाद के अनुसार दो भाई अपने पैतृक घर में संयुक्त
परिवार के रूप में अलग-अलग मंजिलों पर रहते थे। लेकिन बड़े भाई की मृत्यु के बाद मृतक का छोटा भाई अपनी भाभी को घर में नहीं रहने दे रहा था। सत्र न्यायाधीश ने मृतक के भाई को मृतक की विधवा पत्नी और पुत्र के लिये सहायता राशि प्रदान करने का आदेश दिया।
🔶नया प्रावधान क्या है?
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने हिंदू अविभाजित परिवार
के संदर्भ मे निम्न प्रावधान किए है।
जब दो व्यक्ति विवाह करके साथ रहे चुके हों या फिर साथ रह रहे हों;
जब दो व्यक्तियों के संबंध की प्रकृति विवाह की तरह हो और वे एक ही घर में रह रहे हों;
कोई दत्तक सदस्य या अन्य सदस्य जो संयुक्त परिवार की
भाँति रह रहा हो; उक्त लोगों के बीच जो आपसी सहयोग और तालमेल स्थापित होता है उसे ही संबंध कहते हैं।
⏩महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम -: 2013
🔸लागू- 22 अप्रैल 2013
🔹इस अधिनियम मे कुल आठ अध्याय है
🔸इस अधिनियम के तहत प्रमुख परिभाषाएं व्यथित महिला -
किसी कार्य स्थल के संदर्भ मे किसी भी आयु की ऐसी महिला जो प्रत्यर्थी द्वारा लैंगिक उत्पीड़ीत की गई हो।
🔴यौन उत्पीड़न :-
🔸ऐसी संस्था जिसमें 10 या 10 से अधिक लोग काम
करते है तथा वहां आंतरिक परिवाद समिति का गठन
किया गया है, ऐसी संस्था मे महिला के साथ हुआ
किसी भी प्रकार का यौन दुर्व्यवहार यौन उत्पीड़न के
तहत एक अपराध माना जायेगा।
🔹यह अधिनियम विशाखा तथा अन्य v/s स्टेट ऑफ
राजस्थान केस 1997 के तहत निर्देशित प्रावधानों के
तहत बना है।
🔸भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 तथा 21 में
कार्यशील महिला के मूल अधिकारों का वर्णन है।
🔹यह केस 1992 में जयपुर की भवरी देवी बलात्कार की
घटना से सम्बंधित है।
🔸भवरी देवी जयपुर की बालविवाह रोकथाम कार्यकर्ता
थी।
🔹इस घटना के बाद मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा के
अध्यक्षता में एक खण्ड पीठ का गठन किया गया
🔸जिसने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा प्रस्तुत की।
🔶इस अधिनियम मे नियोक्ता समिति गठन करने का
प्रावधान है जिसे सिविल कोर्ट की शक्तियां प्रदान हुई।
इस अधिनियम के तहत यदि किसी व्यक्ति पर लैंगिक
उत्पीड़न का आरोप लगा है और वह सबूत जुटाने में
असक्षम या प्रावधानो को पुरा नहीं कर पाता तो
50,000 का अर्थ दंड का प्रावधान है।
🔸इस अधिनियम के तहत जांच की अवधि में महिला छुट्टी ले सकती है या अपना स्थानांतरण करवा सकती है।
🔹अध्याय 1 :- अधिनियम का नाम विस्तार क्षेत्र तथा लागू करने की तिथि
🔸अध्याय 2 :- आंतरिक परिवाद समिति का गठन - संस्था द्वारा
🔹अध्याय 3 :- स्थानीय परिवाद समिति का गठन - जिला अधिकारी द्वारा
🔸अध्याय 4 :- परिवाद एवं सुलह
🔹अध्याय 5 :- परिवाद की जांच
🔸अध्याय 6 :- संस्था प्रधान के कर्तव्य
🔹अध्याय 7 :- जिला अधिकारी के कर्तव्य और शक्तियां
🔸अध्याय 8 :- प्रकिर्ण
⏩पूर्व गर्भाधान और प्रसवपूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 :-
Pre conception & Pre Natal Diagnostic
Techniques Act 1994.
🔸इस अधिनियम को लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम
1994 के नाम से भी जाना जाता है।
🔸लागू:-20 सिंतबर 1994
🔸इस अधिनियम का संशोधन 14 फरवरी 2003 को।
🔸यह अधिनियम कन्या भ्रूण हत्या तथा गिरते लिंगानुपात
को रोकने हेतु जन्म से पूर्व लिंग की जांच पर पांबदी
लगाता है।
◾जन्म से पूर्व लिंग की जांच तकनीक का उपयोग केवल
निम्न विकारो की जांच के लिए किया जा सकता है
1. गुणसूत्र सबंधी विकार
2. आनुवंशिक रोग
3. रक्त वर्णिका रोग
4. लिंग संबंधी रोग
5. जन्मजात विकृतीयों
6. अन्य असमानताए रोग।
🔴चिकित्सक निम्न शर्तो को भली प्रकार जांच कर महिला
की भ्रूण की जांच कर सकता है।
1. गर्भवती स्त्री की उम्र 35 वर्ष से अधिक हों।
2. गर्भवती स्त्री के स्वतः दो या दो से अधिक गर्भपात
हो चुके हो।
3. गर्भवती स्त्री नशीली दवा का सेवन करती हो।
4. गर्भवती स्त्री या उसके पति का मानसिक मंदता का
पारिवारिक इतिहास रहा हो।
5. केन्द्रीय प्रर्यवेक्षक बोर्ड द्वारा संसूचित कोई अन्य
अवस्था।
🔸इस अधिनियम के तहत दोषी पाये गए अल्ट्रासाउड
सेंटर, डॉक्टर, लैवकर्मी, दम्पति को 3 से 5 वर्ष तक
की सजा तथा 10 से 50 हजार तक के जुर्माने का
प्रावधान है।
⏩सती रोकथाम अधिनियम 1987 -
🔹भारत में सती प्रथा पर प्रतिबंध 1829 में लॉर्ड विलियम
बेंटिक द्वारा लगाया गया।
🔸सती प्रथा पर रोक लगाने का श्रेय राजा राम मोहन
राय को दिया जाता है। जिन्होने अपनी पत्रिका संवाद
कोमुदी के माध्यम से सती प्रथा की आलोचना की।
🔹राजस्थान में सर्वप्रथम 1822 में बूंदी नरेश विष्णु सिंह ने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।
🔸यह अधिनियम 3 जनवरी 1988 को लागु हुआ।
🔶 यह अधिनियम प्रतिबंधित करता है -
1. विधवा को स्वैच्छिक या जबरन जलाने या दफनाने
पर।
2. किसी भी समारोह या जुलुस के माध्यम से सती
प्रथा को महिमामंडित करना।
3. किसी वितिय ट्रस्ट या मंदिर निर्माण या ऐसा
स्मारक जो विधवा की स्मृति का महिमामंडन करता हो।
🔶 सजा :-
1. सती कर्म करने का प्रयल करने पर अधिकतम 6
माह का कारावास तथा जुर्माना
2. सती का महिमामंडन करने पर न्यूनतम 1 वर्ष तथा
अधिकतम 7 वर्ष का कारावास तथा न्यूनतम 5,000
तथा अधिकतम 30,000 का जुर्माना।
🔹रूपकंवर सती काण्ड - 4 सिंतबर 1987 देवराला
सीकर मालवसिंह शेखावत की पत्नी सती हुई राजस्थान मे
सती प्रथा की अंतिम घटना।
⏩अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम 1956
🔹लागू-30 दिसंबर 1956
🔶प्रमुख परिभाषाएं -
1. वैश्या गृह -: कोई घर कमरा अथवा घर का कोई
भाग किसी अन्य व्यक्ति की अभिलाषा पुरी करने
अथवा दो या दो अधिक वैश्याओं के लैंगिक शोषण या
दुरूपयोग के लिए परायोजित है।
2. बालक - ऐसा व्यक्ति जिसने 16 वर्ष की आयु पुरी
नही की हो।
3. व्यस्क - ऐसा व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो
यह अधिनियम व्यवसायिक यौन उत्पीड़ण अथवा
वैश्यावृती को रोकथाम करता है।
इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित कार्य अपराध की
श्रेणी में आते है।
I. अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे या नाबालिक द्वारा की
गई वेश्या वृति की कमाई पर रहता है तो उसे न्यूनतम
7 साल तथा 10 वर्ष तक सजा हो सकती है।
II. 18 साल से कम उम्र की लड़की को गैरकानूनी
संभोग के लिए फुसलाना (धारा 366 क के तहत)
अगर कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करते हुए पाया गया या
करवाने के लिए मजबूर किया तो 10 साल की जेल
और जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।
III. विदेश से लड़की का आयात करना (धारा 366 ख
के तहत) अगर कोई व्यक्ति 21 वर्ष के कम उम्र की
लड़की को विदेश से या जम्मू कश्मीर से लाकर यौन
संबंध के लिए मजबूर करता है या यौन संबंध बनाता है
तो 10 साल की जेल और जुर्माने से दण्डित किया
जायेगा।
IV. वैश्यावृति के लिए बच्चे को बेचना (धारा 372)
अगर कोई व्यक्ति 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को इस
कृत के लिए प्रयोग में लाता हैं तो 10 साल की जेल
और जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।
v. यदि कोई व्यक्ति 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की को
किसी वैश्यालय को बेचता है या भाड़े पर देता है तो
यह माना जायेगा की उस व्यक्ति ने लड़की को
वेश्यावृति के लिए ही बेचा जब तक इसके विपरीत
साबीत न हो जाये ।
VI. वैश्यावृति के लिए बच्चे को खरीदना (धारा 373)
अगर कोई व्यक्ति किसी 18 साल से कम उम्र के बच्चे
को इस कार्य के लिए प्रयोग मे लाता है तो 10 साल
की जेल और जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।
🔶POCSO Act 2012
Protection of Children from Sexual Offences Act 2012
⏩ यौन शोषण से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम 2012
🔸लागू-14 नवम्बर 2012
🔹यह अधिनियम बच्चों के प्रति बढ़ते हुए लैंगिक अपराधो, अश्लील गतिविधयों तथा शोषण के रोकथाम को
अधिनियमित करता है।
🔸धारा 1- अधिनियम का नाम, विस्तार क्षेत्र तथा लागू
होने की तिथि
🔹धारा 2 - प्रमुख परिभाषाएं
🔸धारा 3 - प्रवेशन लैंगिक हमला
I. किसी व्यक्ति द्वारा अपना लिंग किसी बालक की
योनि, मुहं, गुदा मे प्रवेश करवाता है या किसी अन्य
व्यक्ति से ऐसा करवाता है।
II. उपरोक्त कृत्य किसी व्यक्ति द्वारा लिंग के अलवा
किसी अन्य वस्तु से करना या अन्य से करवाना।
III. उपरोक्त कृत्य में बच्चों के योन अंगो पर अपना मुहं
लगाना या अन्य व्यक्ति से मुहं लगवाना।
🔹धारा 4 - प्रवेश लैंगिक हमले के लिए दंड
न्यूनतम 7 वर्ष का कारावास जो आजीवन कारावास में
बदल सकता है तथा अर्थ दंड।
🔸धारा 5 - गुरूतर प्रवेशन लैंगिक हमला।
I. कोई पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बल का सदस्य,
लोकसेवक, किसी जेल, संरक्षण गृह, कोई अस्पताल,
कोई छात्रावास, शिक्षण संस्थान, इत्यादि का अधिकारी
होते हुए 12 वर्ष से कम उम्र के बालक के साथ लैंगिक
प्रवेशन हमला करता है।
•अश्लील प्रयोजनो के लिए बालक का इस्तेमाल
•उपरोक्त सभी बाते किसी मिडिया, इंटरनेट अथवा
T.V. चैनल के माध्यम से प्रचारित करना।
•अश्लील प्रयोजनो के लिए किसी बालक को प्रलोभन
देना।
🔹धारा 12 - लैंगिक उत्पीड़न के लिए सजा
3 वर्ष अधिकतम कारावास व अर्थदण्ड।
🔸धारा 13 - बालक का अश्लील प्रयोजनो के लिए प्रयोग
•किसी बालक के जनन अंगो का प्रदर्शन
•किसी बालक का उपयोग वास्तविक या काल्पनीक
लैंगिक कार्यों में प्रयोग (प्रवेशन या उसके बिना)।
•किसी बालक का अशोभनीय प्रदर्शन करना।
🔹धारा 14 - अश्लील प्रयोजनो के लिए सजा
सामान्यतः 5 वर्ष तक की सजा का प्रावधान जो
पश्चातवर्ति दोष सिद्ध की स्थिति में 10 वर्ष तथा
अर्थदण्ड।
🔸धारा 15 - बालको को सम्मलीत करने वाली अश्लील
सामग्री के लिए दण्ड
किसी व्यक्ति द्वारा वाणिज्यिक प्रयोजनो के लिए बालक
को सम्मलित कर किसी अश्लील सामग्री का भंडारन
किया जाता है तो अधिकतम 3 वर्ष तक का कारावास
तथा अर्थ दण्ड।
🔶अधिनियम से संबंधित प्रमुख तथ्य -
1. अपराधों के निपटरों के लिए विशेष आदालतों की
नियुक्ति
2. अप्रैल 2018 में मिली कैबीनेट मंजूरी के बाद 12 वर्ष
से कम उम्र की बालिका के साथ रेप होने पर मौत की
सजा का प्रावधान है।
3. यदि अभियुक्त किशोर है तो उस पर किशोर
न्यायालय अधिनियम 2000 के तहत मुकदमा चलेगा।
4. यदि पीड़ित बच्चा विकलांग है या मानसिक रूप से
बिमार है तो उसके लिए हेतु व्यक्ति की
नियुक्ति होगी।
5. यदि अपराधि द्वारा अधिनियम मे वर्णित अपराधों के
अलावा अन्य अपराध किया गया है तो सजा उस
अपराध के तहत मिलेगी जो सबसे जग्घनय होगा तथा
सबसे सख्त सजा मिलेगी।
6. बालक से साक्ष्य लेते समय अभियुक्त को छिपाया
जायेगा तथा बालक की पहचान यथा संभव गुप्त रखी
जायेगी।
7. न्यायालय बालक की किसी विश्वासी व्यक्ति के
सामने ही बयान दर्ज करेगा।
8. बालक के कथन को रिकार्ड करते समय पुलिस
अधिकारी वर्दी मे नही रहेगा।
9. बालक का कथन किसी ऐसे स्थान पर रिकार्ड होगा
जहां बालक सजग महशूश करे
⏩किशोर न्याय (बालको की देख-रेख और सरंक्षण) अधिनियम 2015
🔸सर्वप्रथम - 1986
🔹लागू-2000
🔸2006 व 2011 में परिवर्तन
🔹2015 में व्यापक रूप से परिवर्तित कर 2016 में लागू
🔸10 अध्याय 112 धारा
🔶किस तरह के बच्चों पर यह कानून -
🔹दो प्रकार
I. ऐसे बच्चे जिनके पास कोई घर/जगह/माता-पिता
अथवा संरक्षक न हो या माता-पिता अथवा सरंक्षक ने
दुर्व्यवहार किया हो।
II. ऐसे बच्चों पर लागू जिनके द्वारा ऐसा कृत्य किया
गया हो जो अपराध की श्रेणी में आता है।
🔶 हर जीले में 5JPO की नियुक्ति व प्रत्येक थाने में
CWPO की नियुक्ति।
Special Juvenile Police Unit
Children Welfare Police Officer
🔶कार्य व नियम
1. नियुक्त पुलिस अधिकारी सादा कपड़ों मे रहेगे।
2. बालीकाओं के साथ संपर्क के लिए महिला पुलिस
कर्मीयों की नियुक्ति।
3. बच्चों से विनम व सौम्य तरीके से बात।
4. बच्चों को असहज बनाने वाले सवाल विनमता पूर्वक
पूछे जाएंगे।
5. FIR की कॉपी शिकायतकर्ता व बच्चे को सौंपी
जाएगी।
अभियुक्त को बच्चे के संपर्क में नहीं लाया जाएगा
एवं अगर अपराध बच्चे ने किया है तो पिडीत व
अभियुक्त बच्चा संपर्क में लाये जाएगें।
7. नियुक्त अधिकारी बाल संरक्षण इकाई, बोर्ड, समिति
और विधिक सेवा प्राधिकरण के संपर्क में रहेगा।
8. अगर पुलिस द्वारा किसी बच्चे को पकड़ा जाता है
तो बच्चे के माता -पिता/अभिभावक के सुचित करना
आवश्यक है तथा 24 घंटे के भीतर उसे किशोर न्याय
बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।
9. बच्चे को हवालात में न डालकर संप्रेषण गृह भेजा
जाए।
10. बच्चे को हथकड़ी, जंजीर या बेड़ी नहीं लगाई जा
सकती है।
11. बच्चे को किसी कथन पर हस्ताक्षर करने को नहीं
कहा जाये।
12. बच्चे को निःशुल्क विधिक सेवा दी जाये।
🔶 सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट बाल कल्याण पुलिस अधिकारी द्वारा तैयार कर किशोर
न्याय बोर्ड को भेजी जाएगी।
⏩ बच्चों एवं महिलाओं से संबंधित मामलों में पुलिस कीभूमिका
1. अपराध होनी की संभावना या होने पर रिपोर्ट
लिखना।
⏩ बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006
🔹लागू- नवम्बर 2007
🔸यह अधिनियम 10 जनवरी 2007 को राष्ट्रपति द्वारा
अधिनियमित किया गया।
🔹इस अधिनियम मे कुल 21 धाराए है।
🔸शारदा अधिनियम - 1929
🔹28 सिंतबर 1929 को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल
द्वारा से पारित किया गया।
🔸वायसराय - लॉर्ड इरविन
🔹यह अधिनियम हरविलास शारदा के नाम पर बना है।
🔸इस अधिनियम में लड़की की विवाह वर्ष तथा
लड़के की विवाह उम 18 वर्ष तय की गई।
🔹वर्तमान में 2006 के अधिनियम से यह उम बढ़ाकर
लड़की की 18 वर्ष तथा लड़के की 21 वर्ष कर दी गई।
▶️बाल विवाह की स्थिति बनने पर अथवा किसी व्यक्ति
द्वारा इसमें लिप्तता पाये जाने पर दो वर्ष का कठोर
कारावास तथा 1 लाख रुपये तक का अर्थ दण्ड अथवा
दोनो का प्रावधान।
🔴Note:-स्त्री को कारावास दण्ड नहीं दिया जाये।
इस अधिनियम के तहत राज्य सरकार को नियम बनाने
की शक्तियां दी गई है।
⏩बालक एवं किशोर श्रम प्रतिषेध अधिनियम 1986
🔶धारा-3 :-
14 वर्ष तक की आयु वर्ग के बालक से किसी भी
प्रकार का खतरनाक कार्य कराना संज्ञेय अपराध है।
🔶प्रमुख प्रावधान -
I. 14 से 18 वर्ष तक के बालक को रोजाना 6 घंटे का
कार्य करवाना चाहिए जिसमें भी लगातार तीन घंटे काम
के बाद 1घंटे अवकास दिया जाना चाहिए।
II. रात्रि 10 से सुबह 8 बजे तक काम नहीं करवाना
चाहिए।
III. सप्ताह में 1 दिन की छुट्टी आवश्यक।
IV. बालक की सुरक्षा के इंतजाम कारखाना अधिनियम
1948 के तहत किये जाए।
•🔸 उच्च न्यायालय के आदेश पर सर्कस में बाल कलाकार
का उपयोग प्रतिबंधित।
•🔹अधिनियम की शर्तों का उल्लंघन करने पर
कारावास/जुर्माना अथवा दोनो की सुनवाई।
•🔸अपराध की सुनवाई - मेट्रोपोलीयन मजिस्ट्रेट या प्रथम
श्रेणी मजिस्ट्रेट
🔹बाल श्रम के किसी केस में बधुआं मजदूर के समान
स्थिती पाई जाऐ तो उस पर बंधुआ मजदूर अधिनियम
1976 के तहत कार्यवाही।
🔸प्रमुख केस -
- बचपन बचाओं आन्दोलन विरुद्ध भारत संघ वाद - 2006
- m.c मेहता बनाम तमलीनाडू राज्य वाद - 1986
⏩बाल श्रम संसोधन अधिनियम 2016
🔸बच्चों को दो श्रेणीयों में विभाजीत -
1.14 वर्ष से कम
II. 14वर्ष पूर्ण परंतु 18 से कम
🔹इन्हें किसी रासायनिक उद्योग, बन्दरगाह अथवा किसी
अन्य खतरनाक काम पर नहीं लगाया जा सकता है।
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